कुछ राजनीतिक दल समान नागरिक संहिता के समर्थन में आ गए हैं, तो कुछ इसका विरोध कर रहे हैं। कुछ पार्टियों का कहना है कि इसका मसविदा आने के बाद अपना रुख तय करेंगी। इसके सामाजिक प्रभाव को लेकर जारी बहस के बीच यह बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन रहा है।
राजनीतिक हलकों में चर्चा इस बात की है कि क्या यूसीसी के मुद्दे पर अलग-अलग राय रखने वाली विपक्षी पार्टियां आम चुनाव तक एक मंच पर आ सकेंगी? यह मुद्दा कानून या संविधान के स्तर पर यह कोई नया विषय नहीं है। संविधान सभा तक में इस पर बहस हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि इस मामले में संविधान निर्माताओं की जो इच्छा थी वह पूरी नहीं हुई है और सरकार इस मामले में कितना वक्त लेगी?
Bạn đang xem: समान नागरिक संहिता : क्या हैं फायदे, कितने नुकसान
संविधान निर्माताओं ने नीति निर्देशक सिद्धांत में अनुच्छेद-44 के माध्यम से समान नागरिक संहिता की कल्पना की थी, ताकि सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों के लिए एक जैसे कानून हो। अनुच्छेद-44 के तहत नीति निर्देशक सिद्धांत के तहत इसकी बात कही गई है। इसके तहत राज्य इस बात का प्रयास करेगा कि सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता हो और देश भर में ये लागू करने का प्रयास किया जाएगा।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता का अर्थ है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। सभी धर्मों के लिए शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में एक ही कानून लागू होगा। इसका अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। इसका उद्देश्य धर्म के आधार पर किसी भी वर्ग विशेष के साथ होने वाले भेदभाव या पक्षपात को खत्म करना है।
राज्यों को उत्तराधिकार, विवाह और तलाक जैसे मुद्दों को तय करने वाले व्यक्तिगत कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। हालांकि, केंद्र सरकार ने शीर्ष कोर्ट में दायर अपने एक हलफनामे में कहा था कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना सरकार का दायित्व है। सरकार ने इसके लिए संविधान के चौथे भाग में मौजूद राज्य के नीति निदेशक तत्वों का ब्यौरा दिया।
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जरूरत क्यों
भारतीय संविधान के मुताबिक, भारत में सभी धर्मों व संप्रदायों (जैसे – हिंदू, मुसलिम, सिख, बौद्ध, आदि) को मानने वालों को अपने-अपने धर्म से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अधिवक्ता शत्रुघ्न सोनवाल के अनुसार, भारत में दो प्रकार के पर्सनल ला हैं। पहला है हिंदू मैरिज एक्ट 1956; जो कि हिंदू, सिख, जैन व अन्य संप्रदायों पर लागू होता है।
दूसरा, इस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए लागू होने वाला मुस्लिम पर्सनल ला। ऐसे में जबकि मुसलिमों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों व संप्रदायों के लिए भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत बनाया गया हिंदू मैरिज एक्ट 1956 लागू है तो मुस्लिम धर्म के लिए भी समान कानून लागू होने की बात की जा रही है।
फायदा या नुकसान
हिंदू मैरिज एक्ट में कई बार सुधार किए गए, जबकि मुसलिम पर्सनल ला में बदलाव नहीं किया गया। मसलन साल 2005 के बाद से हिंदू कानून के तहत बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में हक मिला। माना जा रहा है कि समान नागरिक संहिता से हिंदू अविभाजित परिवार (एचयूएफ) का प्रावधान खत्म हो जाएगा। आयकर अधिनियम के तहत एचयूएफ को एक अलग इकाई माना जाता है।
आदिवासी इस मांग के विरोध में हैं। आदिवासी संगठनों का मानना है कि इस कारण आदिवासियों की पहचान खतरे में पड़ जाएगी। इसकी वजह से आदिवासियों को जमीन की सुरक्षा देने वाले कानून निरस्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिए झारखंड में छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट और संथल परगना टेनेंसी एक्ट जैसे दो आदिवासी कानून प्रभावित होंगे, जो जमीन को सुरक्षा देते हैं। आदिवासियों के कानूनों का तो अभी तक दस्तावेजीकरण भी नहीं किया गया है। कुछ लोगों की तो अपनी नहीं बल्कि सामुदायिक संपत्ति हैं, तो उस स्थिति में क्या होगा।
पूर्वोत्तर में क्यों हो रहा विरोध
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साल 2011 की जनगणना के अनुसार नगालैंड में 86.46 फीसद, मेघालय में 86.15 फीसद और त्रिपुरा में 31.76 फीसद आबादी अनुसूचित जनजाति है। मेघालय में आदिवासी परिषद ने संहिता को लागू किए जाने के विरोध में प्रस्ताव पास किया है। इस प्रस्ताव को पेश करते हुए खासी हिल्स आटोनामस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल ने माना है कि यूसीसी से खासी समुदाय के रिवाज, परंपराओं, मान्यताओं, विरासत, शादी और धार्मिक मामलों से जुड़ी आजादी पर असर पड़ेगा।
खासी समुदाय मातृसत्तात्मक नियमों पर चलता है। इस समुदाय में परिवार की सबसे छोटी बेटी को संपत्ति का संरक्षक माना जाता है और बच्चों के नाम के साथ मां का उपनाम लगता है। इस समुदाय को संविधान की छठी अनुसूची में विशेष अधिकार मिले हुए हैं। इसके अलावा नगालैंड बैपटिस्ट चर्च काउंसिल (एनबीसीसी) और नगालैंड ट्राइबल काउंसिल (एनटीसी) ने भी यूसीसी को लेकर चिंता जताई हैं।
कुछ तथ्य
समान नागरिक संहिता का पालन कई देशों में होता है। इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किये, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र, अमेरिका, आयरलैंड, आदि शामिल हैं। इन सभी देशों में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून है और किसी धर्म या समुदाय विशेष के लिए अलग कानून नहीं हैं।भारत में अभी शादी, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने के मामलों में विभिन्न समुदायों में उनके धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग कानून हैं। यूसीसी आने के बाद भारत में किसी धर्म, लिंग और लैंगिक झुकाव की परवाह किए बगैर सब पर इकलौता कानून लागू होगा।
क्या कहते हैं जानकार
भारत एक ऐसा देश है जहां कई धर्मों और संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते हैं, इसलिए यूसीसी न केवल मुसलमानों को प्रभावित करेगा, बल्कि हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, यहूदी, पारसी और आदिवासी वर्ग भी इससे प्रभावित होंगे।
- भूपेश बघेल, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
आप कौन-सा सिद्धांत लागू करेंगे- हिंदू, मुसलिम या फिर ईसाई? यूसीसी को कुछ बुनियादी सवालों का जवाब देना होगा। जैसे कि शादी और तलाक का क्या मानदंड होगा? गोद लेने की प्रक्रिया और परिणाम क्या होंगे? तलाक के मामले में गुजारा भत्ते या संपत्ति के बंटवारे का क्या अधिकार होगा? और अंत में संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम क्या होंगे?
- आलोक प्रसन्ना कुमार, विधिवेत्ता
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